Saturday, October 31, 2015

मेरा धर्म भ्रष्ट होता है


यह कविता मैंने 1985 में लिखी थी । शायद आज भी प्रांसगिक है इसलिए पुनः प्रस्तुत कर रहा हूँ। उम्मीद है सुधि जन उन प्रसंगो को पहचान पाएंगे ।




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