Thursday, January 4, 2024

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  • आज जब पूरा देश राममय है और सभी को २२ जनवरी की प्रतीक्षा है तब दिमाग में आया कि राम मेरी जीवन यात्रा में कैसे जुड़े हैं इस पर क्यों न एक वृतांत लिखूं। राम और रामचरितमानस पूरी जीवनयात्रा में साथ रहे हैं। एक फ्लैशबैक। अब यह तो याद नहीं कि रामचरितमानस कब पढ़ना शुरू किया पर ये याद है कि कक्षा ६ या ७ में (उम्र ९ या १० वर्ष) पढ़ते वक्त मुझे मानस का सुंदरकांड कंठस्थ था। स्कूल के एक कार्यक्रम था उसमे मैंने सुंदरकांड का पाठ किया था। मेरे कुछ मित्र और परिवार के सदस्य तुलसीदास कहकर चिढ़ाते थे। खैर, समय अपनी गति से चलता रहा। प्रयागराज की पावन धरती पर थोड़ा धार्मिक माहौल रहता ही था। जीरो रोड पर स्थित प्रयाग साहित्य समिति के प्रांगण में मानस सम्मेलन होता था जहां मानस की विभिन्न घटनाओं की मीमांसा और व्याख्या होती थी। पिताजी उन सम्मेलनों में ले जाते थे और किशोर मन पर उनका प्रभाव पड़ता रहा। समय प्रवाह के साथ यह सब छूटता गया। हॉस्टल जीवन से शुरू हुआ एक नया परिवेश किंतु मानस की चौपाइयां जीवन के साथ रहीं। जब भी छुट्टियों के बाद कॉलेज के लिए या नौकरी के लिए निकलता था तो मां यह चौपाई कहती थीं: " प्रबसी नगर कीजे सब काजा, हृदय राखी कोशलपुर राजा"। साथ ही कहती थीं कि कोई भी नया काम शुरू करो यह जरूर कहना: मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवहु सो दशरथ अजीर बिहारी। आज भी ये चौपाइयां गुनगुना लेता हूं। एक संयोग बना की मेरा विवाह मिथिलांचल बिहार में हुआ। वैसे तो मिथिलांचल का रिवाज है की हर वधू को सीतास्वरूप और वर को रामस्वरूप माना जाता है लेकिन मेरे विषय में तो वधू मिथिला की और वर अवध का सो सारे विवाह के गीत सिया और राम पर ही रहे। अवध में मिथिला की लड़की के विवाह को राम सीता के प्रसंगों से ही जोड़ा जाता रहा है। इन गानों में मानस की यह पंक्ति जरूर आ जाती थी: " एही भांति गौरी अशीष सुनी सहित सिया हर्षित चली, तुलसी भवानी पूजी मुदित मन मंदिर चली"। फिर नौकरी में अल्मोड़ा में एक रूटीन था। दोपहर में लंच और उसके बाद चाय पर बहुत विषयों पर चर्चा होती थी। कभी किसी विषय का समाधान नहीं मिलता तो मेरे वरिष्ठ सहकर्मी जगदीश भट्ट जी यह चौपाई कह कर विमर्श को गरम होने से बचाते थे: सियाराम मय सब जग जानी, करहू प्रणाम जोरी जुग पानी "। साथ में हममें से कोई एक और चौपाई जोड़ देता था " होईहों सोई जो राम रची रखा, को करी तर्क बाधावाही शाखा"। वैज्ञानिक होने के नाते अक्सर डाटा सामने आते थे और उनके interpretation को लेकर अपने सहयोगियों के साथ मतांतर हो जाता था। इस मतांतर को समाप्त करने के लिए अक्सर मैं ये चौपाई दोहरा देता था " जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी"। ये different views को परिभाषित करने का अच्छा तरीका होता था। ये चौपाई बाद में भी मीटिंग्स में विभिन्न राय को manage करने में सहायक रहा। जीवन यात्रा में उतार चढाव तो आते ही रहते हैं। उन क्षणों में एक चौपाई अक्सर कहता था: धीरज धर्म मित्र अरु नारी, आपद काल परखिए चारी। जिन मित्रों ने उन कठिन परिस्थितियों  में साथ दिया उन्हें मैं कभी नहीं भूलता। आज अक्सर हम लोग Fair weather friends की बातें करते हैं पर तुलसीदास जी ने ५०० वर्ष पहले ही ये सार समझा दिया था। साथ ही यह भी शिक्षा दी की विपत्ति पड़ने पर धर्म और धीरज नही छोड़ना चाहिए। आज अयोध्या में प्रभु श्रीराम के प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर ये यादें दोहराकर यह महसूस हुआ की राम हमारे जीवन के कण कण में बसे हुए हैं। जीवन के हर पग पर मानस की चौपाइयां हमें रास्ता दिखाती हैं। जब जीवन मार्ग में अंधेरा छा जाता है तो मानस की चौपाइयां प्रकाश पुंज का कार्य करती हैं। आज पुन: प्रभु श्रीराम के चरणों में प्रणाम करते हुए जीवन यात्रा के लिए आशीर्वाद की आकांक्षा है। यदि कहीं गलती हो तो क्षमा प्रार्थी हूं। हां जितनी चौपाइयां लिखी सब स्मरण से ही लिखा है। गूगल का सहारा नही लिया है। अत: भूल चूक की माफी।
  • अब यह तो याद नहीं कि रामचरितमानस कब पढ़ना शुरू किया पर ये याद है कि कक्षा ६ या ७ में (उम्र ९ या १० वर्ष) पढ़ते वक्त मुझे मानस का सुंदरकांड कंठस्थ था। स्कूल के एक कार्यक्रम था उसमे मैंने सुंदरकांड का पाठ किया था। मेरे कुछ मित्र और परिवार के सदस्य तुलसीदास कहकर चिढ़ाते थे। खैर, समय अपनी गति से चलता रहा। प्रयागराज की पावन धरती पर थोड़ा धार्मिक माहौल रहता ही था। जीरो रोड पर स्थित प्रयाग साहित्य समिति के प्रांगण में मानस सम्मेलन होता था जहां मानस की विभिन्न घटनाओं की मीमांसा और व्याख्या होती थी। पिताजी उन सम्मेलनों में ले जाते थे और किशोर मन पर उनका प्रभाव पड़ता रहा। समय प्रवाह के साथ यह सब छूटता गया। हॉस्टल जीवन से शुरू हुआ एक नया परिवेश किंतु मानस की चौपाइयां जीवन के साथ रहीं। जब भी छुट्टियों के बाद कॉलेज के लिए या नौकरी के लिए निकलता था तो मां यह चौपाई कहती थीं: " प्रबसी नगर कीजे सब काजा, हृदय राखी कोशलपुर राजा"। साथ ही कहती थीं कि कोई भी नया काम शुरू करो यह जरूर कहना: मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवहु सो दशरथ अजीर बिहारी। आज भी ये चौपाइयां गुनगुना लेता हूं। एक संयोग बना की मेरा विवाह मिथिलांचल बिहार में हुआ। वैसे तो मिथिलांचल का रिवाज है की हर वधू को सीतास्वरूप और वर को रामस्वरूप माना जाता है लेकिन मेरे विषय में तो वधू मिथिला की और वर अवध का सो सारे विवाह के गीत सिया और राम पर ही रहे। अवध में मिथिला की लड़की के विवाह को राम सीता के प्रसंगों से ही जोड़ा जाता रहा है। इन गानों में मानस की यह पंक्ति जरूर आ जाती थी: " एही भांति गौरी अशीष सुनी सहित सिया हर्षित चली, तुलसी भवानी पूजी मुदित मन मंदिर चली"। फिर नौकरी में अल्मोड़ा में एक रूटीन था। दोपहर में लंच और उसके बाद चाय पर बहुत विषयों पर चर्चा होती थी। कभी किसी विषय का समाधान नहीं मिलता तो मेरे वरिष्ठ सहकर्मी जगदीश भट्ट जी यह चौपाई कह कर विमर्श को गरम होने से बचाते थे: सियाराम मय सब जग जानी, करहू प्रणाम जोरी जुग पानी "। साथ में हममें से कोई एक और चौपाई जोड़ देता था " होईहों सोई जो राम रची रखा, को करी तर्क बाधावाही शाखा"। वैज्ञानिक होने के नाते अक्सर डाटा सामने आते थे और उनके interpretation को लेकर अपने सहयोगियों के साथ मतांतर हो जाता था। इस मतांतर को समाप्त करने के लिए अक्सर मैं ये चौपाई दोहरा देता था " जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी"। ये different views को परिभाषित करने का अच्छा तरीका होता था। ये चौपाई बाद में भी मीटिंग्स में विभिन्न राय को manage करने में सहायक रहा। जीवन यात्रा में उतार चढाव तो आते ही रहते हैं। उन क्षणों में एक चौपाई अक्सर कहता था: धीरज धर्म मित्र अरु नारी, आपद काल परखिए चारी। जिन मित्रों ने उन कठिन परिस्थितियों  में साथ दिया उन्हें मैं कभी नहीं भूलता। आज अक्सर हम लोग Fair weather friends की बातें करते हैं पर तुलसीदास जी ने ५०० वर्ष पहले ही ये सार समझा दिया था। साथ ही यह भी शिक्षा दी की विपत्ति पड़ने पर धर्म और धीरज नही छोड़ना चाहिए। आज अयोध्या में प्रभु श्रीराम के प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर ये यादें दोहराकर यह महसूस हुआ की राम हमारे जीवन के कण कण में बसे हुए हैं। जीवन के हर पग पर मानस की चौपाइयां हमें रास्ता दिखाती हैं। जब जीवन मार्ग में अंधेरा छा जाता है तो मानस की चौपाइयां प्रकाश पुंज का कार्य करती हैं। आज पुन: प्रभु श्रीराम के चरणों में प्रणाम करते हुए जीवन यात्रा के लिए आशीर्वाद की आकांक्षा है। यदि कहीं गलती हो तो क्षमा प्रार्थी हूं। हां जितनी चौपाइयां लिखी सब स्मरण से ही लिखा है। गूगल का सहारा नही लिया है। अत: भूल चूक की माफी।